Friday 18 February 2011

श्रीकृष्ण की कर्मस्थली है वृंदावन

श्रीकृष्ण की कर्मस्थली है वृंदावन
पिछले अंक में हमने पढ़ा कि नंदबाबा आदि सभी गोप-गोपियां अपना गौधन आदि संपत्ति लेकर वृंदावन में आकर बस गए। वृन्दा का अर्थ है भक्ति। सो भक्ति का वन है वृन्दावन।

बालक के पांच वर्ष पूर्ण होने पर उसे गोकुल से वृन्दावन ले जाया जाए अर्थात लाड़ प्यार की प्राथमिक अवस्था में से अब उसे भक्ति के वन में लाया जाना चाहिए। बच्चों का हृदय बड़ा कोमल होता है अत: उसे दिए गए संस्कार उसके मन में अच्छी तरह जम जाते हैं। उसे बचपन में अच्छें संस्कार देंगे, तो उसका यौवन भ्रष्ट नहीं होगा और वह जीवनभर संस्कारी बना रहेगा।
अब भगवान गोकुल छोड़ चुके हैं। नई जगह आए हैं वृन्दावन और वृन्दावन के बारे में ऐसा कहते हैं कि वृन्दावन में राजा नहीं हुआ, वृन्दावन में रानी हुई है राधा। यह राधा का क्षेत्र है। वृन्दावन के पास में एक गांव था बरसाना और बरसाना के मुखिया थे वृषभानु और उनकी बेटी थी राधा। भगवान की जन्मस्थली थी गोकुल और कर्मस्थली वृन्दावन। भागवत कथा में यहां से राधाजी का प्रवेश हो रहा है।
यदि भागवत को बारीकी से पढ़ें, तो भागवत में श्री या तो शुकदेवजी के लिए एक बार लगा है या कृष्णजी के लिए एक बार लगा है। बाकी किसी भी पात्र के लिए भागवतजी में श्री नहीं लगाया जाता। लोगों ने पूछा ऐसा क्यों, तो व्यासजी ने बताया ये भागवत में श्री शब्द का अर्थ है राधा। जैसे श्रीमद्भागवत यहां भागवत की शुरुआत में ही राधाजी का स्मरण किया गया है। चूंकि उनके बिना भागवत हो ही नहीं सकती।

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