Friday 18 February 2011

बस सोचिए तो, हर काम आसान हो जाएगा

बस सोचिए तो, हर काम आसान हो जाएगा
जगत के सब कार्य करते हुए उनके प्रति अनासक्त हुए बिना वैराग्य में दृढ़ता नहीं आती। वैराग्य और अभ्यास के समानान्तर पथ पर चलकर ही जीवन आध्यात्म की मंजिल, मोक्ष, ईश्वर प्राप्ति, परमानन्द प्राप्त कर सकता है। यह अत्यन्त कठिन और अत्यन्त सरल है। कठिनता और सरलता इसके प्रति दृष्टिकोण पर निर्भर करती है।
सतत् अभ्यास से सहजता आती है और सहजता सरल बनाती है। इसके विपरित कठिनता है। सब भावना का खेल है। यदि भावना हो कि मेरे प्रियतम परमात्मा मेरे अन्दर हैं और मैं सर्वव्यापी परमात्मा के अन्दर मैं हूं, बस काम आसान हो जाता है। इस भावना को आत्मबोध की संज्ञा दी जा सकती है और जब यह निरन्तर बनी रहती है तब इसे आत्मदर्शन कहा जा सकता है। इसमें दृढ़ता व अनन्यता आने पर जो अभ्यास से आती है, आत्म प्रबोधिक साधक अपने मानव जीवन के अन्तिम लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है, इसे जीवनमुक्त अवस्था की भी संज्ञा दी जाती है।
जीवन मुक्त में अटूट आत्मबल होता है। आत्मबली का मन निश्चल, निर्मल, स्थिर और षक्ति सम्पन्न होता है।यह प्रसंग अग्नि के माध्यम से हमको समझा रहा है कि जीवन में अनासक्ति, वैराग्य का क्या महत्व है।
अब तक भागवत में आपने पड़ा कि कृष्णा कालीया नाग के आतंक से ब्रजवासियों को मुक्त करवाने के लिए यमुना में कूद पड़ते हैं और कालीया नाग का मर्दन करते है अब आगे की कथा इस प्रकार है..व्रजवासी और गौएं सब बहुत ही थक गए थे। ऊपर से भूख-प्यास भी लग रही थी। इसलिए उस रात वे व्रज में नहीं गए, वही यमुनाजी के तट पर सो रहे। गर्मी के दिन थे, उधर का वन सूख गया था। आधी रात के समय उसमें आग लग गई। उस आग ने सोये हुए व्रजवासियों को चारों ओर से घेर लिया और वह उन्हें जलाने लगी। आग की आंच लगने पर व्रजवासी घबड़ाकर उठ खड़े हुए और लीला- मनुष्य भगवान् श्रीकृष्ण की शरण में गए।
उन्होंने कहा-प्यारे श्रीकृष्ण! श्यामसुन्दर! महाभाग्यवान् बलराम! तुम दोनों का बल विक्रम अनन्त है। देखा, देखो यह भयंकर आग तुम्हारे सगे सम्बन्धी हम स्वजनों को जलाना ही चाहती है। तुम में सब सामथ्र्य है। हम तुम्हारे सुहृद् हैं, इसलिए इस प्रलय की अपार आग से हमें बचाओ। प्रभो! हम मृत्यु से नहीं डरते, परन्तु तुम्हारे अकुतोभय चरण कमल छोडऩे में हम असमर्थ हैं। भगवान् अनन्त हैं, वे अनन्त शक्तियों को धारण करते हैं, उन जगदीश्वर भगवान् श्रीकृष्ण ने जब देखा कि मेरे स्वजन इस प्रकार व्याकुल हो रहे हैं तब वे उस भयंकर आग को पी गए।

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