Friday 18 February 2011

वत्सासुर व बकासुर का वध किया श्रीकृष्ण ने

वत्सासुर व बकासुर का वध किया श्रीकृष्ण ने
 
वृंदावन में रहते हुए श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई के साथ गाय-बछड़ों को चराने के लिए जाने लगे। कंस ने वत्सासुर राक्षस को वहां भेजा। एक दिन कृष्ण ने देखा कि बछड़े व्याकुल होने लगे, तो उन्होंने स्थिति समझकर वत्सासुर को टांगों से पकड़ा और उसका प्राणान्त कर दिया।

एक दिन की बात है, सब ग्वालबाल अपने बछड़ों को पानी पिलाने के लिए जलाशय के तट पर ले गए। उन्होंने पहले बछड़ों को जल पिलाया और फिर स्वयं भी पिया। ग्वालबालों ने देखा कि वहां एक बहुत बड़ा जीव बैठा हुआ है। वह ऐसा मालूम पड़ता था, मानो इन्द्र के वज्र से कटकर कोई पहाड़ का टुकड़ा गिरा हो।
ग्वालबाल उसे देखकर डर गए। वह बक नाम का एक बड़ा भारी असुर था जो बगुले का रूप धर के वहां आया था। उसकी चोंच बड़ी तीखी थी और वह स्वयं बड़ा बलवान था। उसने झपटकर श्रीकृष्ण को निगल लिया। जब कृष्ण बगुले के तालु के नीचे पहुंचे, तब वे आग के समान उसका तालु जलाने लगे। बकासुर ने तुरंत ही कृष्ण को उगल दिया और फिर बड़े क्रोध से अपनी कठोर चोंच से उन पर चोट करने लगा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उसकी चोंच पकड़कर दो टुकड़े कर दिए। ऐसी वीरता देखकर ग्वालबाल आश्चर्यचकित हो गए।
जब बलराम आदि बालकों ने देखा कि श्रीकृष्ण बगुले के मुंह से निकल कर हमारे पास आ गए हैं, तो बड़ा आनन्द हुआ। सबने कृष्ण को गले लगाया। इसके बाद अपने-अपने बछड़े हांककर सब वृंदावन में आए और वहां उन्होंने घर के लोगों को सारी घटना कह सुनाई।

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