Friday 18 February 2011

मन की चुप्पी ही मौन है

मन की चुप्पी ही मौन है
बांसुरी का एक गुण यह भी है कि जब वह अकेली होती है तब मौन ही रहती है। हम भी ईश्वर के ध्यान में एकांत के समय मौन का पालन करें। कई लोग शरीर से तो सावधान रहते हैं, मुंह बन्द रखते हैं किन्तु मन से चलते-फिरते बोलते रहते हैं। मौन का अर्थ है मन से भी कुछ न बोला जाए। मन का मौन ही सर्वोत्तम मौन है। बांसुरी वादन तो नाद ब्रह्म की उपासना है। बांसुरी को लेकर गोपियां चर्चा करती हैं कि अरी सखी यह कन्हैया बंसी बजा रहा है।

दूसरी गोपी कहती है ये बंसी नहीं कृष्ण की पटरानी है। मैंने सुना है कि जब वह भोजन करने बैठता है तब बांसुरी को कमर की फेंट में ही रखता है और जब सोता है तो उसे अपने साथ सेज पर रखता हैं, आंखें दासियां हैं, पलकें पंखे हैं, नथनी छत्र है। इस बांसुरी का परमात्मा के साथ विवाह हुआ है। अत: इसे नित्य संयोग प्राप्त हुआ। इस वेणु ने अपने पूर्व जन्म में न जाने कौन सी तपस्चर्या की कि उसे कृष्ण के अधरामृत का नित्यपान करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।एक गोपी ने बांसुरी से पूछा-अरी सखी! तूने ऐसा कौन सा पुण्य कमाया था, कि तुझे प्रभु ने अपना लिया। बांसुरी बोली-मैंने बड़ी तपस्चर्या की। मेरा पेट खाली है, मैं अपने पेट में कुछ भी नहीं रखती। बांसुरी अपने पेट में कुछ भी नहीं रखती। जो बांसुरी जैसा बन जाता है, वह भगवान् को भाता है।

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